Hum Tum Me Uljhe Hain Is Kadar
हम तुम में उलझे हैं इस कदर, की, ये ज़मी नज़र नहीं आती, ये आसमान नज़र नहीं आता.
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हम तुम में उलझे हैं इस कदर, की, ये ज़मी नज़र नहीं आती, ये आसमान नज़र नहीं आता.
एक तू ही है जिस पे मेरी जान बसती है,हजारों ख्वाहिशें और अरमान बस्ती है.
तू उलझन है मेरी और तुझसे ही है उल्फत,बताओ मैं क्या करूँ ऐ मेरे हमदम.
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